एक बचपना था तभी ऐसे
झुंझला जाते थे छोटी बातों में नजाने क्यू और कैसे ,
धडकने तेज़ हो जाती और आँखें कपकपाती
मनो लाल रंग कोइला का हो वैसे !
आज हस्ते हैं उन खयालो में ऐसे ,
मुस्कुराते हैं सोच कर नादानीया थी कैसे ,
ज़हन में कुछ बेचैनिय बस जाती थी
वजय का अता पता न होता वैसे !
कुछ समां पते उस वक़्त में हस्ते हुए ऐसे ,
रह जाती वोह यादें एक चेहेकती हसी जैसे ,
खुद पर हसना इतना मुश्किल भी न था
पर वोह बचपना कहाँ हँसा पता हमे वैसे !
कुछ बदल पाते उन गुज़रे लम्हों को ऐसे ,
उन गुजरे कल में तबदीली होती आज जैसे ,
कुछ तसल्ली और संतोषण शायद ज़यादा होता
पर गुजरे वक़्त के बाद ही ,
बचपने का एह्सास होता हैं वैसे !!
- Kiran Hegde
झुंझला जाते थे छोटी बातों में नजाने क्यू और कैसे ,
धडकने तेज़ हो जाती और आँखें कपकपाती
मनो लाल रंग कोइला का हो वैसे !
आज हस्ते हैं उन खयालो में ऐसे ,
मुस्कुराते हैं सोच कर नादानीया थी कैसे ,
ज़हन में कुछ बेचैनिय बस जाती थी
वजय का अता पता न होता वैसे !
कुछ समां पते उस वक़्त में हस्ते हुए ऐसे ,
रह जाती वोह यादें एक चेहेकती हसी जैसे ,
खुद पर हसना इतना मुश्किल भी न था
पर वोह बचपना कहाँ हँसा पता हमे वैसे !
कुछ बदल पाते उन गुज़रे लम्हों को ऐसे ,
उन गुजरे कल में तबदीली होती आज जैसे ,
कुछ तसल्ली और संतोषण शायद ज़यादा होता
पर गुजरे वक़्त के बाद ही ,
बचपने का एह्सास होता हैं वैसे !!
- Kiran Hegde
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