आखों में बसे यह ख़्वाब हैं क्यों
पलकों में बसे यह आस हैं क्यों
एक धुंधली मीठी सी हो जैसी
पर वक़्त के साथ थोड़ी बदलती भी हैं यह न जाने क्यों
आँखों से ओझल कुछ बातें हैं जो
मन में बसे कुछ चाहतें भी हो वोह
यू तो कभी मिले न मिले
पर ख्वाबो में ही यू - नजर आते हैं क्यों
क्या हमे दिखता कोई झूट हैं !
क्या हमे बहकाता कोई युही फ़िज़ूल हैं!
कर देता आँखों से ओझल - कोसो दूर हैं !
पर
कुछ पेचीदे जवाब भी देते यह ख़्वाब हैं
कुछ पहेलिया सुलजाती भी यह ख़्वाब हैं
कुछ मीठ यादें बन कर बस जाते झेहेंन में
न समझे आते कहाँ से और बनाता कोन यह ख़्वाब हैं !
- Kiran Hegde
kya baat hai, bahut hi masoom sa khayaal hai, bahut sunder si rachna hai.
ReplyDeleteCheers,
Blasphemous Aesthete
Thanks a lot Anshul :-)
ReplyDeleteAchha Khawab hai:):)....very nice:)
ReplyDeleteThanks Rajani! :-)
ReplyDeleteWah! Kya khayal hein aapke! Keep it coming....
ReplyDeleteThanks Deepak anna & Mahi.. :)
ReplyDeletegreat, if you could post in English, that would be awesome.
ReplyDeleteSure I will try, thanks!!
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