आज कोई सुकून ख़ास हैं !
बेवजह कोई ख़ुशी का एहसास हैं !
धीमे गुजरते वक़्त में नजाने क्यों,
कोई अंजानी सी महक - ख़ास हैं !
ख़ुशी को ढूंडनेमें लगा था शायद कही,
कहा ऊपर वाले से - कोई तलाश हैं कही,
वोह लौ हवा के झोके से कुछ य़ू हिला,
और मन में ख्याल आया
सुकून की तलाश हैं शायद कही !
सुकून देने वाली जगह सोच रहा था !
वोह शांत, निशाब्ध वातावरण सोच रहा था !
वोह खामोश प्रतिवेश और परियावरण सोच रहा था !
फिर समाज आई,
सुकून तो अभी यहाँ भी हैं !
इन वाहनों के ध्वनि के बिच भी हैं !
सुकून तो शायद मन में ही हैं !
इसे ढूंडते गलत दिशा में, हम हैं !
प्रतिकूल परिस्तिथियाँ बनाता मन हैं !
अनुकूल होने पर भी होती ख़ुशी कम हैं !
लेकिन,
मन में हो अगर सुकून तो,
क्लिष्ट, कठिन और मुश्किल - नहीं कुछ हैं !
सरल और सहज बन जाए हर काम इस तरह,
की वोह मिटाती हर गम हैं !
और बस जाती मन में,
शांतता और सुकून हैं !
- किरण हेगड़े
बिलकुल,
ReplyDeleteसुकून कभी बाहर था ही नहीं, गौर से देखें तो सुकून है यहीं...
हमारे भीतर.
सुंदर कविता लिखी है,
Blasphemous Aesthete
Beautifully written apart from some spelling errors!;)
ReplyDeleteRegards,
Sapna Hegde
Thanks a lot Anshul!!!
ReplyDelete@Sapna : Thank you!
ReplyDeletePls let me know I will correct it :)
thanks again!
I wish I knew what the words meant. I love your blog theme, very peaceful!
ReplyDeleteWow .. Very beautifully written ... It gives a sense of peacefulness .... You are not only wonderful Engineer ,but also very good Poet ... Good work ...Keep it up ... God Bless you !!!
ReplyDeleteShweta
Thanks a lot for your encouragement Shweta!!
ReplyDelete